उसके चेहरे से नजर हे कि हटती नहीं
वो जो मिल जाये अगर चहकती कहीं
जिन्दगी मायूस थी आज वो महका गयी
जेसे गुलशन में कोई कली खिलती कहीं
वो जो हंसी जब नजरे मेरी बहकने लगी
मन की मोम आज क्यों पिगलती गयी
महकने लगा समां चांदनी खिलने लगी
छुपने लगा चाँद क्यों आज अम्बर में कहीं
भूल निगाओं की जो आज उनसे टकरा गयी
वो बारिस बनकर मुझ पे बरसती गयी
कुछ बोलना ना चाहते थे मगर ये दिल बोल उठा
धीरे- धीरे मधुमयी महफिल जमती गयी
उस चाँद में दाग हे मालूम हे हमें
वो बेदाग़ चाँद मिल जाए रातों में कहीं
आँखों का नूर करता मजबूर मेरी निगाहों को
दिल के दर्पण पर उसकी तस्वीर बनती गयी
सदियों से बंद किये बेठे थे इस दिल को
मगर चुपके से वो इस दिल में उतरती गयी
तिल तिल जलता हे दिल मगर दुंहा हे कि उठती नहीं
परवाना बनकर बेठे हे शमां हे की जलती नहीं
हो गयी क़यामत वो जो सामने आ गयी
दर्द ऐ दिल से गजल आज क्यों निकलती गयी
[CZS]⇒ PDF Fruits Healthy Eating with MyPlate Nancy Dickmann 9781432969806
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9781432969806 Boo...
5 years ago
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